Book Name: | [PDF] Mere Baad…. (Hindi Book) |
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Mere Baad…. (Hindi Book) By Rahat Indori
Mere Baad…. (Hindi Book) (मेरे बाद…) is a hindi book of Ghazal, Shayri and Poetry by Rahat Indori.
I have a long introduction to Rahat Bhai, who knows the intricate skills of telling the deepest things easily. In Mushaira or Kavi-Sammelan they live like a blob on a lotus leaf. The leaf shakes, thunderstorms come, the blossom does not fall from the leaf. Many times poets and poets gather onstage before the program starts, but since poets’ conferences or mushaira are like a show or event in this new corporate era, the poets usually stand backstage before the start. Huh. They are called one by one with the name, then they come on stage. The poet for whom a lot of applause continues for a long time, his name is Rahat Indore. They come in a simple veneer like a teacher, which is not shayarn at all. In response to the applause, he bends the Samayan slightly and looks at his place of comfort to sit, though there is no way for him to sit with his palate. A carefree also sits on the stage with chastity, when Rahat Bhai sits. Usually, the palm rests with a mattress. Many times I keep looking at his thick, straight hand, which he rests on, looking at his rings and looking at the fingers of the finger, to see how happy that $ pen will be when the hand comes out of this hand. Such Ashrar whose life is very good, is very long. When the relief comes on the mic, it seems that this man attached to the ground is standing in such a way that the ground is happy and when he raises his hands, it seems that the sky is touching. They may be very happy with the applause or expect the applause when narrating their Ashraar, it does not happen. His guise, his alphas, his payoff, his grip on the tongue, the throb of his voice, the movement of his hands, his art of getting far and near the mic, his skill of drawing the final sound of the word, repeating a line several times. Intelligence to give time to think, caution, no role nor epilogue, if there is a single word that cannot be lost anywhere, then only and only Ashrar They do not tell a lot, but what is heard does not seem small. Because it takes many times to think about what they heard. They stun the Samayans. They do not prepare for their magic, but when they come on the dias, their magic goes up and speaks. Relief Indore has to be one. They are a unique style of their own, hundreds of poets around the world emulate them, but what happens with the style of Kahan, there should be a wide pool of thinking and understanding behind the style. ‘The firefighters then won the battle with the darkness, the moon, the sun kept in the light of the house’ This lion states that they have so much courage in them that they can keep the moon and sun in their light by lifting the moon from the sun. The light shines on both sides. Inside the house and outside the house as well. If they are the sun, the moon. I feel that Rahat Indori is a light, who glorifies the spiritual world and gives a blessing to the outlaw. Much can be discussed about Rahat Bhai, he is a relief for poets’ conferences and mushayars, a heritage because they love Samayan. I pray that Rahat Bhai continues to contribute long-term to keep the poet-conference and Mushayars level…!
मेरे बाद…. (हिंदी पुस्तक) राहत इंदौरी द्वारा
गहरी से गहरी बात को आसानी से कह देने का जटिल हुनर जाननेवाले राहत भाई से मेरा बड़ा लम्बा परिचय है। मुशायरे या कवि-सम्मेलन में वे कमल के पत्ते पर बूँद की तरह रहते हैं। पत्ता हिलता है, झंझावात आते हैं, बूँद पत्ते से नहीं गिरती। कई बार कवि और शायर कार्यक्रम शुरू होने से पहले मंच पर आसन जमा लेते हैं, लेकिन इस नए कॉरपोरेट ज़माने में चूँकि कवि-सम्मेलन या मुशायरा एक शो या इवैंट की तरह हैं, तो शुरुआत से पहले आमतौर से शायर हज़रात मंच के पीछे खड़े रहते हैं। नाम के साथ एक-एक करके उनको पुकारा जाता है, तब मंच पर आते हैं। जिस शायर के लिए खूब देर तक खूब सारी तालियाँ बजती रहती हैं, उनका नाम है राहत इन्दौरी। एक अध्यापक जैसे सादा लिबास में वे आते हैं, जो बिलकुल शायराना नहीं होता। तालियों के प्रत्युत्तर में वे हल्का सा झुककर सामईन को आदाब करते हैं और बैठने के लिए अपनी सुविधा की जगह देखते हैं, वैसे उन्हें पालथी मारकर बैठने में भी कोई गुरेज़ नहीं होता। एक बेपरवाही भी शाइस्तगी के साथ मंच पर बैठती है, जब राहत भाई बैठते हैं। आमतौर से हथेली को गद्दे से टिका देते हैं। मैं कई बार उनके गाढ़े साँवले सीधे हाथ को, जिसको वे टिकाते हैं, देर तक देखता रहता हूँ, उसकी अँगूठियों को निहारता हूँ और उँगली अँगूठे के पोरों को देखता हूँ कि कितनी खुश होती होगी वह $कलम जब इस हाथ से अशआर निकलते होंगे। ऐसे अशआर जिनकी जि़न्दगी बहुत तवील है, बहुत लम्बी है। राहत साहब जब माइक पर आते हैं तो लगता है कि ये ज़मीन से जुड़ा हुआ आदमी कुछ इस तरह खड़ा है कि ज़मीन खुश है और वो जब हाथ ऊपर उठाते हैं तो लगता है कि आसमान छू रहे हैं। वे तालियों से बहुत खुश हो जाएँ या अपने अशआर सुनाते वक्त तालियों की अपेक्षा रखें, ऐसा नहीं होता। उनका अन्दाज़, उनके अल्फाज़, उनकी अदायगी, ज़बान पर उनकी पकड़, उनकी आवाज़ का थ्रो, उनके हाथों का संचालन, माइक से दूर और पास आने की उनकी कला, शब्द की अन्तिम ध्वनि को खींचने का उनका कौशल, एक पंक्ति को कई बार दोहरा कर सोचने का समय देने की होशियारी, एक भी शब्द कहीं ज़ाया न हो जाए इसकी सावधानी, न कोई भूमिका और न उपसंहार, अगर होते हैं तो सिर्फ और सिर्फ अशआर। बहुत नहीं सुनाते हैं, लेकिन जो सुना जाते हैं, वह कम नहीं लगता। क्योंकि वे जो सुना गए, उस पर सोचने के लिए कई गुना वक्त ज़रूरी होता है। वे सामईन को स्तब्ध कर देते हैं। वे अपने जादू की तैयारी नहीं करते, लेकिन जब डायस पर आ जाते हैं तो उनका जादू सिर चढ़कर बोलता है। राहत इन्दौरी का होना एक होना होता है। वे अपनी निज की अनोखी शैली हैं, दुनिया-भर के सैकड़ों शायर उनका अनुकरण करते हैं, लेकिन सिर्फ कहन की शैली से क्या होता है, शैली के पीछे सोच और समझ का व्यापक भंडार भी तो होना चाहिए। ‘जुगनुओं ने फिर अँधेरों से लड़ाई जीत ली, चाँद, सूरज घर के रौशनदान में रखे रहे’ ये शेर ये बताता है कि उनके अन्दर इतना हौसला है कि कायनात से चाँद-सूरज को उठाकर वे अपने रौशनदान में रख सकते हैं। रौशनदान दोनों तरफ उजाला करता है। घर के अन्दर भी और घर के बाहर भी। अगर वे सूरज, चाँद हैं तो। मुझे लगता है कि राहत इन्दौरी एक रौशनदान हैं, जो आभ्यन्तर लोक को भी दैदिप्यमान करते हैं तो बहिर्लोक को भी चुंधिया देते हैं। बहुत लम्बी चर्चा की जा सकती है राहत भाई के बारे में वो कवि-सम्मेलनों और मुशायरों के लिए एक राहत हैं, एक धरोहर हैं क्योंकि वे सामईन की चाहत हैं। मैं दुआ करता हूँ कि राहत भाई कवि-सम्मेलन और मुशायरों को स्तरीय बनाए रखने में अपना योगदान दीर्घकाल तक देते रहें…!
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